ये आवाज नही शेर कि दहाड़ है हम खडे हो जाये तो पहाड़ है…
ये जो सर पे घमंड का ताज रखते हैं सुन लो दुनिया वालो ham इनके बाप लगते है।
मंजील बदले या वक्त बदले हम अपना मुकाम जरूर पायेंगे। जो समझते है खुदको बादशाह उनको एक दिन अपने दरबार में जरूर नचायेंगे ।
शेर का शिकार किया नहीं जाता राजा को दरबार मे मारा नहीं जाता दुश्मनी अपने ओकात वालो से कर बाप से खेल खेला नहीं जाता !
कोशिश न कर सभी को “खुश” रखने की कुछ लोगो की “नाराजगी” भी जरूरी है चर्चा में बने रहने के लिए…